Friday, July 23, 2010

अरबन हाट: दुकानों का पैसा ही वसूल नहीं

जोधपुर. अरबन हाट बनाने के पीछे मंशा यह थी कि शहरवासियों को एक ही जगह शॉपिंग की बेहतरीन सुविधाएं मिल सकें। पाली रोड पर एक करोड़ रुपए खर्च करके पहले चरण में कई दुकानें बनाईं भी लेकिन सुविधाएं नहीं होने के कारण लोगों ने इस ओर रुख ही नहीं किया।

जिला उद्योग केंद्र ने ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कई मेले भी लगाए और आने-जाने की सुविधा भी की लेकिन इतनी दूर खान-पान की व्यवस्था न कर पाने से ग्राहकों का आकर्षण नहीं रह पाया। यहां की अधिकांश दुकानें खाली पड़ी रहती हैं। जो कुछ खुलती भी हैं तो व्यापारी बेकार बैठे रहते हैं।

दो करोड़ रुपए की अनुमानित लागत के साथ अरबन हाट के पहले चरण में एक करोड़ तीन लाख रुपए खर्च हुए। दूसरे चरण में म्यूजियम के साथ फास्ट फूड स्टॉल भी लगानी थीं लेकिन सरकार ने इसके लिए राशि आवंटित नहीं की। अब इनके नहीं बनने से यहां पर स्थानीय लोगों तथा पर्यटकों के पैर कम ही पड़ते हैं।

बरसों से हो रहा है ग्राहकों का इंतजार

अरबन हाट शिल्पकारों के लिए सुनहरा ख्वाब है लेकिन आमजन के लिए यह फ्लॉप शो साबित हुआ। यहां पर उन्हें न तो हस्तनिर्मित वस्तुएं मिलती हैं और न ही मनोरजंन के साधन। जोधपुर में अरबन हाट बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार ने जिला उद्योग केंद्र को 9 बीघा से ज्यादा भूमि निशुल्क दी और केन्द्र सरकार ने बजट।

16 अगस्त 2002 को हाट का शिलान्यास किया और 13 फरवरी 2004 को 92 स्टॉल सहित उद्घाटन किया गया। लोगों को आकर्षित करने के लिए यहां पर म्यूजियम और फास्ट फूड सेंटर बनाना था ताकि आमजन यहां आएं और शिल्प वस्तुओं का अवलोकन कर खरीदारी करें। लेकिन लोगों के यहां नहीं आने से यह योजना मूर्त रूप में नहीं ले सकी। जिला उद्योग केंद्र भी दुकान लेने वालों का इंतजार कर रहा है और जिन शिल्पकारों ने यहां दुकानें ली हैं वे खरीदारों का इंतजार कर रहे हैं।

जागरूक पाठक की सूचना पर डीबी स्टार टीम ने एक सप्ताह तक इस अरबन हाट पर नजर रखी। दोपहर, शाम कोई दुकान खुली नहीं दिखी। सरकार ने 200 लाख का अनुमानित बजट तय किया था और अब तक इस पर 103.70 लाख रुपए खर्च भी किए जा चुके हैं। पहले चरण में यहां पर उनके लिए पक्की स्टॉल्स बनाई गईं।

डेयरी बूथ था आकर्षण

स्कीम के तहत यहां दो फूड प्लाजा बनने थे, लेकिन वहां पर किसी ने भी फूड प्लाजा नहीं लगाया। इसलिए डेयरी बूथ ही आकर्षण का केन्द्र था। अगर कोई भूले-भटके यहां आ भी जाता तो उसे इस बूथ से खाने-पीने की वस्तुएं मिल जाती थीं। लेकिन अब डेयरी का बूथ भी यहां नहीं है, क्योंकि घाटे के कारण वह भी अधिक समय तक नहीं चल पाया।

पसरा रहता है सन्नाटा

अरबन हाट बनाने का उद्देश्य था कि प्रदेश और देश के विभिन्न क्षेत्रों की शिल्प एवं हस्तकलाओं को एक ही छत के नीचे लाया जा सके लेकिन यहां स्टॉल्स नहीं खुलने से यह उद्देश्य पूरा नहीं हुआ। अरबन हाट में बनी 50 दुकानों में से अधिकांश हर वक्त बंद रहती हैं।

पाली रोड पर झालामण्ड चौराहे से पहले बने अरबन हाट में दुकानें नहीं खुलने से खरीदार या पर्यटक न के बराबर आते हैं। ऐसे में कई दुकानों के शटर तो टूट भी गए हैं। जहां पर म्यूजियम बनना था वहां पर झाड़ियां उग आई हैं और जहां दो फूड कॉर्नर बनने थे वहां ईंट तक नहीं लगी।

लोकप्रिय बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं

अरबन हाट को विकसित होने में थोड़ा समय लग सकता है। एक बार केन्द्र सरकार इसे अपने कैलेण्डर में शामिल कर ले तो यह अपने मकसद में कामयाब हो सकता है। पर, कैलेण्डर में शामिल होने के लिए अरबन हाट को अपने पूरे स्वरूप में आना आवश्यक है। इसमें एक चरण का काम होना बाकी है। इसके अलावा यहां आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों के मनोरजंन और खाने-पीने की सुविधा के इंतजाम भी करने होंगे। ताकि न केवल वहां लोगों के पांव पड़े बल्कि रुके भी। फिलहाल वर्ष में कई तरह के मेले लगाकर इसे लोकप्रिय बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। - एसएल पालीवाल, संयुक्त निदेशक, जिला उद्योग केन्द्र

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