Thursday, August 12, 2010

मरीज की जान पर भारी मनमानी

जोधपुर. सरकारी अस्पताल में डॉक्टर और नर्सिग स्टाफ की मनमानी मरीजों की जान पर भारी पड़ रही है। मंगलवार को निजी ब्लड बैंक से लाया ब्लड पीलिया की एक मरीज को चढ़ाने से मना कर दिया जबकि पहले भी सरकारी अस्पताल में रजिस्टर्ड निजी ब्लड बैंकों से लाया गया ब्लड मरीजों को चढ़ाया जाता रहा है।

जागरूक पाठक की सूचना पर डीबी स्टार टीम मौके पर पहुंची तब तक परिजन मरीज कमला चौधरी को डिस्चार्ज करवाकर निजी अस्पताल ले जा चुके थे। टीम निजी अस्पताल पहुंची तो वहां कमला को ब्लड चढ़ाया जा रहा था। ओसियां के खारी गांव की कमला चौधरी को पीलिया होने पर एमडीएम अस्पताल लाया गया था। वार्ड में डॉक्टर्स ने परिजनों को ए नेगेटिव ब्लड की तीन यूनिट व्यवस्था करने की पर्ची दी। इस ग्रुप का ब्लड अस्पताल की ब्लड बैंक में नहीं था। इस पर परिजनों को अन्य जगह से ब्लड की व्यवस्था करने को कहा गया।

परिजन महात्मा गांधी अस्पताल और उम्मेद अस्पताल की ब्लड बैंक पहुंचे। लेकिन वहां भी उन्हें ए नेगेटिव ब्लड नहीं होने का कहते हुए वापस भेज दिया गया। परेशान परिजन निजी क्षेत्र की ब्लड बैंक में गए और एक यूनिट ब्लड लेकर तुरंत अस्पताल पहुंचे। वहां मौजूद डॉक्टर दिनेश सैनी से तुरंत यह ब्लड मरीज को चढ़ाने के लिए कहा। लेकिन सैनी ने नियमों का हवाला देते हुए उन्हें एमडीएम अस्पताल की ब्लड बैंक से वेरीफाई करवाने के लिए भेज दिया। मंगलवार अपराह्न् करीब 4 बजे ब्लड बैंक में ड्यूटी कर रहे कर्मचारियों ने निजी ब्लड बैंक से लाए ब्लड को वेरीफाई करने से ही इनकार कर दिया।

कर्मचारियों ने परेशान हो चुके परिजनों की एक नहीं सुनी। इधर मरीज की हालत खराब होती जा रही थी। परिजनों ने डॉक्टरों और नर्सिग स्टाफ से हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि मरीज को यह ब्लड चढ़ा दें लेकिन वे अपनी बात पर अड़े रहे। इस पर चिंतित परिजन कमला को डिस्चार्ज करवाकर पावटा क्षेत्र के निजी अस्पताल ले गए। वहां वही ब्लड जांच के बाद चढ़ाया गया तब मंगलवार देर रात कमला की तबीयत में सुधार हो पाया। टीम ने तहकीकात को पता चला कि पहले भी सरकारी अस्पतालों में रजिस्टर्ड निजी ब्लड बैंकों से लाया ब्लड चढ़ाया जाता रहा है हालांकि जिम्मेदारों ने कहा कि यह ड्यूटी डॉक्टर पर निर्भर करता है कि वह मरीज को यह ब्लड चढ़ाए या नहीं।

निजी ब्लड बैंक का ब्लड लेने में परेशानी नहीं

रजिस्टर्ड निजी ब्लड बैंक से लाए हुए ब्लड को सरकारी अस्पताल में चढ़ाया जा सकता है। वैसे हम हमारे द्वारा लिए हुए ब्लड को ही ज्यादा सुरक्षित मानते हैं। ब्लड चढ़ाने का अंतिम निर्णय संबंधित डॉक्टर का होता है। अगर डॉक्टर को लगता है कि मरीज की स्थिति क्रिटिकल है तो वह निजी ब्लड बैंक का ब्लड भी चढ़ाता है। निर्णय परिस्थिति के अनुसार लिया जाता है। - डॉ. एसएन चावला, इंचार्ज, पैथोलॉजी विभाग, डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज

कमला को सोमवार को भर्ती करवाया गया। उसको पीलिया हो गया था। मंगलवार को उनके परिजनों को ए नेगेटिव ब्लड लाने के लिए कहा गया। वे निजी ब्लड बैंक से ब्लड लेकर सीधे हमारे पास आ गए। हमने उन्हें कहा कि नियमों के अनुसार ब्लड बैंक में ब्लड जमा होने व आवश्यक जांच के बाद ही मरीज को चढ़ाया जा सकता है। इसमें हम क्या कर सकते हैं? - डॉ. दिनेश सैनी, मेडिकल वार्ड में ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर

ड्यूटी डॉक्टर ही तय करता है

ब्लड क्यूं नहीं चढ़ाया, इसकी जानकारी भी वे ही दे पाएंगे। जहां तक होता है, हम अस्पताल में डोनेट हुए ब्लड को ही प्रिफर करते हैं। आप जिस केस की बात कर रहे हैं, उसकी जानकारी मुझे नहीं है। वैसे वार्ड में अगर किसी मरीज को ब्लड चाहिए और वह ग्रुप अस्पताल में नहीं है तो ब्लड लाने का निर्णय वार्ड में ड्यूटी दे रहे डॉक्टर को ही करना होता है। - डॉ. आशा पुरोहित, इंचार्ज, एमडीएम अस्पताल ब्लड बैंक

हम क्रॉसमैच और टेस्टेड ब्लड ही देते हैं

हमारे यहां से सरकारी ब्लड बैंक में ब्लड काफी समय से जाता रहा है और वहां पर चढ़ाया भी जाता है। हम यहां पर क्रॉसमैच और टेस्ट किया हुआ ब्लड ही देते हैं जिसे मरीज को चढ़ाया जा सकता है। - एसआर मेहता, संचालक, पारस ब्लड बैंक

हालत गंभीर हो गई थी

पत्नी की तबीयत गंभीर थी। ए नेगेटिव ब्लड के लिए तीनों अस्पतालों में भटके, लेकिन इस ग्रुप का ब्लड नहीं मिला तब एक निजी ब्लड बैंक में डोनेट करवाकर व्यवस्था की। एमडीएम अस्पताल के कर्मचारियों ने इस ब्लड को लेने से ही मना कर दिया। - मेहराम चौधरी, मरीज कमला के पति

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