Sunday, July 4, 2010

दुलार को अपनों का इंतजार

जोधपुर. जिंदगी में दुलारचंद के सामने इससे बड़ा इम्तिहान भला और क्या हो सकता है? तीमारदारी में लगे लोग इतना ही जानते हैं कि यह दुलारचंद है। अपने घर से मीलों दूर रोजी-रोटी की तलाश में जोधपुर आया दुलारचंद खुद अपनी पहचान का मोहताज है।

हादसे ने उसकी याददाश्त छीन ली है। वह बोल नहीं पा रहा। एक महीना बीतने को आया, स्टील फैक्ट्री के साथी अभी इस उम्मीद में हैं कि उसकी याददाश्त आए तो वह अपने घर-परिवार के बारे में बताए। साथी चंदा करके उसका इलाज करा रहे हैं। उसके इलाज पर हजारों रुपए खर्च हो चुके हैं। अभी भी हजारों रुपए और चाहिए। दुलारचंद रोजाना की तरह छह जून को भी रात साढ़े नौ बजे घर के लिए निकला था।

एक टैक्सी ने उसे ऐसी टक्कर मारी कि वह बेसुध होकर गिर पड़ा। दो सप्ताह तक अस्पताल में रहने के बाद उसे होश तो आया लेकिन सिर पर गंभीर चोट लगने के कारण याददाश्त चली गई। वह बोल तक नहीं पा रहा। अब दुलारचंद का इलाज ठेकेदार दिवाकर के घर पर चल रहा है। वह चलने फिरने में भी लाचार हो गया है। उसके पैर व बायां हाथ काम नहीं कर रहा है।

दिवाकर के परिवारजन व फैक्ट्री के अन्य श्रमिक उसकी देखभाल कर रहे हैं। उसके सिर में 30 से ज्यादा टांके लगे हैं। अब तक करीब 90 हजार रुपए उपचार में खर्च हो चुके हैं। लेकिन अब आगे के उपचार के लिए रुपयों का जुगाड़ करना मुश्किल हो गया है। बासनी में दिवाकर के घर खाट पर सोये दुलारचंद को दवा के साथ दुआ की भी जरूरत है। दिवाकर सहित आसपास के लोग दुलारचंद के परिजनों का पता लगाने की कोशिश करते-करते थक चुके हैं।

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