Sunday, July 4, 2010

मेंढकी रै ब्याव री अब कोनी बाजे पीपाड़ी

जोधपुर. समय के साथ इंद्रदेव को रिझाने के जतन भी कम पड़ गए हैं। मानसून में देरी से आमजन परेशान तो हैं लेकिन जो टोटके दो दशक पहले तक हुआ करते थे वे अब गांवों में भी नजर नहीं आते। इतना जरूर है कि कहीं-कहीं अनुष्ठानों का चलन अब भी है।

मान्यता थी कि रुद्राभिषेक से भगवान शिव व इन्द्र प्रसन्न होने से बरसात हो जाती है और ये अब भी यदा-कदा किए जाते हैं लेकिन टोटकों की परंपरा तो लुप्त सी हो चुकी है। अब न मेढ़क-मेंढ़की की शादी की वो पुपाड़िया मारवाड़ के देहात में सुनाई देती हैं न लोग घरों के बाहर जाकर गोठ अथवा उजेणी मनाते हैं। वैसे शहर में लोगों ने बारिश के लिए दुआ और प्रार्थना की शुरुआत कर दी है।

आषाढ़ के आरंभ में आम तौर पर बरसात शुरू हो जाया करती है। अमावस्या तक भी बारिश नहीं हो तो मारवाड़ में लोग इन्द्र को मनाने की कोशिश करते हैं। जोधपुर में तो आखातीज पर घांची समाज बरसों से धणी से जमाने के बारे में पता लगाता आ रहा है। आषाढ़ लगते ही बरसात के लिए रुद्रपाठ व अभिषेक का सिलसिला शुरू हो जाता है। सावन शुरू होते ही पाठ व सावन धारा के साथ रुद्राभिषेक हो जाते हैं।

पंडित महेंद्र महाराज बताते हैं कि दूध व पानी में शिवलिंग तर करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और बरसात होती है। सरोवर किनारे आटे के मेढ़क बनाकर पूजा के बाद इन्हें जल में प्रवाहित करने का विधान है। पंडित नवीन दत्त का मानना है कि गांवों मेढ़कों की शादी का उपक्रम किया जाता था। इसके पीछे मान्यता थी कि शादी में बहुत सारे मेढ़क आएं और उनकी टर्र टर्र सुनकर बरसात शुरू हो जाए। पंडित रमेश पुरोहित ने बताया कि बरसात के लिए रुद्रीपाठ का विशेष महत्व था और आज भी है।

अनूठे टोटके

धारणा रही है कि छत पर कांसी की थाली उल्टी रखने से बरसात हो जाती थी। गांवों में मुखिया के अलसुबह बिना वस्त्र पहने अन्न लेकर खेत पर जाकर बुवाई करने पर भारी बरसात होने और जमकर पैदावार का मान्यता रही है। माना जाता था कि किसी मंदिर पर शिखर पर सफेद या लाल कपड़े में नारियल बांधने पर बरसात होगी। बरसात रोकने के लिए भी छत पर तवा उल्टा रखने के लिए और एक आंख वाले सात लोगों के नाम लेने जैसे टोटके अपनाए जाते रहे हैं।

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