Sunday, August 1, 2010

मार्केट से लेकर घर तक ‘संशय’

जोधपुर. पॉलीथिन पर प्रतिबंध का मामला अब मार्केट से घर तक सबकी जुबान पर है, लेकिन इसको लेकर मार्केट से घर तक संशय की स्थिति बनी हुई है।

राज्य सरकार के एक अगस्त से प्लास्टिक के कैरी बैग्स पर प्रतिबंध की घोषणा के बावजूद प्रशासन ने सुस्ती की चादर ओढ़े रखी, नतीजतन बाजार में इसका विकल्प तैयार नहीं हो पाया। अगर प्रशासन इसको लेकर एक महीने पहले से लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाता तो शायद इसके परिणाम सकारात्मक आने की उम्मीद थी, लेकिन न तो नगर निगम और न ही प्रशासन ने इसको गंभीरता से लिया।

अब तारीख नजदीक आई तो प्रशासन व नगर निगम आनन-फानन में आधी-अधूरी तैयारी के साथ प्रतिबंध लगाने की कवायद में जुटा है। इसके परिणाम क्या आएंगे यह कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन जिस तरह का संशय बना हुआ है उससे इसकी सफलता को लेकर संदेह है। इधर व्यापारी वर्ग इसके विकल्प व प्रशासनिक कार्रवाई के बारे में सोचकर पसोपेश में है, वहीं गृहिणियों को अब कपड़े के थैले की चिंता सताने लगी है।

दुकानदारों ने पॉलीथिन खरीदना कम कर दिया है और थोक विक्रेता भी अपना स्टॉक खत्म करने लगे हैं। गृहिणियों का मानना है कि प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बाद अब उन्हें बाजार से सामान खरीदने में दिक्कतें आएगी। सबसे ज्यादा दिक्कत किराने के सामान व सब्जी खरीदने में आएगी।

लाखों रुपए कर्ज लेकर व्यापार करने वालों का कारोबार ठप हो जाएगा। इसका असर ट्रेडिंग पर भी पड़ेगा। व्यापारी बैंक की किस्त भी नहीं चुका सकेंगे। पॉलीथिन पर प्रतिबंध का फैसला स्वागत योग्य है, लेकिन इसमें कई विसंगतियां हैं, उन्हें दूर करने के बाद ही इस व्यवस्था को लागू किया जाना चाहिए। इससे इंस्पेक्टर राज को भी बढ़ावा मिलेगा। ठेलाधारकों से लेकर शो-रूम संचालकों तक से चौथ वसूली को बढ़ावा मिलेगा। - जितेंद्रराज लोढ़ा, उद्योगपति व पॉलीथिन विक्रेता

नगर निगम गंभीर नहीं

सीवरेज समस्या के लिए सबसे बड़ी परेशानी बने पॉलीथिन थैलियों के खिलाफ जनजागरण अभियान चलाने को लेकर न तो निगम के अफसर गंभीर हैं और न ही बोर्ड बैठकों में पॉलीथिन पर रोक लगाने की पैरवी करने वाले जनप्रतिनिधि ही गंभीर हैं। शहर में पॉलीथिन थैलियों के कारण सीवरेज सिस्टम की बदहाल स्थिति किसी से छिपी नहीं है। निगम में अलग से सीवरेज विंग स्थापित किया गया है, लेकिन इतने बड़े फैसले को लागू करने के पहले निगम ने अपने ही पार्षदों के साथ चर्चा करना मुनासिब नहीं समझा। निगम इतने बड़े फैसले पर बोर्ड की विशेष बैठक बुलाता, जिससे कई महत्वपूर्ण सुझाव आते और इसका संदेश भी जाता।

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