Saturday, June 12, 2010

जोधपुर में बढ़े चिंकारा व काले हिरण

जोधपुर जिले के शिकार निषिद्ध क्षेत्रों में चिंकारा और काले हिरणों की संख्या एक ही साल में एक हजार बढ़ गई है। गत माह हुई वन्यजीव गणना में खुलासा हुआ है कि देचू ठाडिया, जांबा, लोहावट,धवा, गुड़ा विश्नोइयां व साथिन में पिछले साल के मुकाबले चिंकारा और काले हिरणों की संख्या बढ़ गई है। वन विभाग ने अब तक गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की है।

राज्य सरकार के निर्देश पर वन विभाग के वन्यजीव प्रभाग ने वाटर प्वाइंट के आधार पर वन्यजीव बाहुल्य इलाकों और माचिया सफारी पार्क में स्वच्छंद विचरण करने वाले वन्यजीवों की गणना की थी। गणना के आंकड़ों के अनुसार इस समय जिले के इन शिकार निषिद्ध क्षेत्रों में 4463 चिंकारा और 1197 काले हिरण हैं, जबकि पिछले साल चिंकारा की संख्या 3489 व काले हिरणों की संख्या 1126 थी।

माचिया में इतने वन्यजीव

बॉयलोजिकल पार्क के रूप में विकसित किए जाने वाले माचिया पार्क में भी स्वच्छंद विचरण करने वाले वन्यजीवों की गणना की गई। यहां 41 रोजड़े, 52 खरगोश, 60 तीतर, 20 मोर, 115 जंगली सूअर, 58 टिटहरी, 25 बटेर, 11 सियार, 10 नेवले, 11 सेही की गणना की गई। इसके अलावा 4 सफेद गिद्ध, 100 सफेद बगुले, 2 पाटागोह, 183 जलकोए और विभिन्न वाटर बर्डस देखे गए।

खरगोश व सांप भी दिखे

वन्यजीव गणना के दौरान रोजड़ा, मोर, टिटहरी, तीतर, बटेर, रेगिस्तानी लोमड़ी, ईगल, जंगली सूअर, नेवला, सियार, सेही, स्पून बिल, कछुआ, भेड़िया, सफेद गिद्ध, सफेद बगुला, झाऊ चूहा, सांडा, पाटागोह, जलकोआ, कैटल ईग्रेट, बाज, वाटर बर्डस सहित खरगोश व काले सांप भी देखे गए। गणना रिपोर्ट के मुताबिक इन क्षेत्रों में 2921 मोर, 701 रोजड़े, 115 जंगली सूअर, 186 खरगोश, 584 तीतर, 96 सियार, 24 रेगिस्तानी लोमड़ी और एक भेड़िया पाया गया। पूरे जिले में विभिन्न प्रजातियों के कुल 10,820 वन्यप्राणी दर्ज किए गए।

शिकार की घटनाओं में आई कमी

विशेषज्ञों के अनुसार सलमान खान पर हिरण शिकार का मुकदमा शुरू होने के बाद से शिकार की घटनाओं में काफी कमी आई। जनवरी 2009 से 11 जून 2010 तक, यानि 18 महीनों में 13 हिरणों के शिकार के मामले दर्ज हुए। इसके अलावा विश्नोई समाज और अन्य जाति विशेष के लोग वन्यजीवों की रक्षा करने में आगे आ रहे हैं। पानी की तलाश में इधर-उधर विचरण करने के दौरान अगर कोई वन्यजीव सड़क दुर्घटना में घायल हो जाता है, तो ग्रामीण उसे उठाकर सीधे जंतुआलय के पशु चिकित्सालय में ले आते हैं। इनका उपचार करने के बाद इन्हें पुन: छोड़ दिया जाता है।

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