जोधपुर. जोधपुर के कई खिलाड़ियों ने मैदान मारे हैं लेकिन वे अब मारे-मारे फिर रहे हैं। खेल प्रतियोगिताओं में जाना तक उनके लिए महंगा पड़ रहा है। उन्हें स्पोर्ट्स अॅथोरिटी ऑफ इंडिया (साई) ने यहां हॉस्टल में सारी सुविधाएं तो दे रखी हैं लेकिन प्रतियोगिताओं के आयोजकों से टीए-डीए नहीं मिल पाया।
हैदराबाद में जूनियर नेशनल चैंपियनशिप एवं इससे पहले जबलपुर में हुई पश्चिम क्षेत्रीय एथलेटिक्स मीट में साई के आठ खिलाड़ियों ने भाग लिया था। इस मीट में गोल्ड मेडल भी इन्होंने जीते लेकिन अब एथलेटिक्स महासंघ से किराया व अन्य भत्ते लेने के लिए ये दौड़-भाग करते थक चुके हैं। ऐसा ही हाल देश-विदेश में हुए दंगलों में दिग्गज पहलवानों को चित कर देने वाले सीनियर पहलवान मोहनलाल बालोटिया का भी है।
वे भी व्यवस्थाओं के आगे चित हो चुके हैं। उन्हें रेलवे ने स्वीपर की नौकरी दी। बरसों की नौकरी में कोई प्रमोशन नहीं मिला और इसी पद से रिटायर्ड हो गए। अब शहर में कुश्ती को जिंदा रखने की उनकी ख्वाहिश भी पूरी नहीं हो पा रही है। वे जिस जगह गुरु हनुमान व्यायामशाला चलाते हैं उसका पट्टा अब तक उनके नाम नहीं हुआ जबकि वे इसका शुल्क भी जमा करवा चुके हैं।
हम भत्ते देंगे बशर्ते
हमारे आठ खिलाड़ी नेशनल चैंपियनशिप में भाग लेने राज्य टीम से गए थे, इसलिए टीए-डीए देने का दायित्व राज्य एथलेटिक्स संघ और खेल काउंसिल का बनता है। जो कि अभी तक नहीं दिया गया है। फिर भी संघ या काउंसिल हमें लिखकर देती है तो साई इनका भुगतान करने को तैयार है। - राजेन्द्र सिंह राठौड़, सहायक निदेशक, साई, जोधपुर
हिन्द केसरी हो या भविष्य के मिल्खा, सभी हैं त्रस्त
खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। गांवों में प्रतिभाएं खोज रही है ताकि कहीं तो पदक तालिका में ऊपर आ सके। लेकिन देश का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ियों को सरकारी सहायता नहीं मिलती। डीबी स्टार टीम ने शहर में खेल और खिलाड़ियों के हालात पर नजर डाली तो पदकों के अकाल के कारण परत दर परत खुलते चले गए। भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के जोधपुर हॉस्टल के आठ खिलाड़ियों ने नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पदक जीते, लेकिन उन्हें टीए-डीए तक नहीं दिया जा रहा है। श्रवण भाटी तो राष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीत चुके हैं। उन्हें प्रतियोगिता में जाने के लिए अपनी जेब से पैसे भरने पड़ रहे हैं।
सत्तर के दशक में जोधपुर के मोहनलाल बालोटिया ने कुश्ती के दंगल में ऐसे दांव खेले थे कि देश-दुनिया में भी उनकी पहलवानी का डंका बज गया। गुरु हनुमान ने उन्हें गुर सिखाए थे। यह खिलाड़ी बाद में रेल के डिब्बे ही धोता रहा। जब प्रमोशन की बारी आई तो अफसरों ने आंखें फेर लीं। बालोटिया ने कुश्ती सिखाने के लिए सरकार से शहर में व्यायामशाला खोलने की मांग की। उन्हें व्यायामशाला का पट्टा तक नहीं दिया गया। सात बार राजस्थान चैंपियन और हिन्द केसरी का खिताब जीतने वाला यह पहलवान खेल रत्न की सरकारी राशि भी प्राप्त नहीं कर सका।
पदक लाए पर भाड़ा तक नहीं दिया
साई जोधपुर हॉस्टल के आठ एथलेटिक्स पदक जीत कर तो लाए, लेकिन उन्हें राष्ट्रीय चैंपियनशिप में जाने का किराया तक नहीं मिल रहा है। 2009 में 6 से 8 दिसंबर तक जबलपुर (मध्यप्रदेश) में पश्चिम क्षेत्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता हुई थी। इसमें राजूराम ने 10 किलोमीटर पैदल चाल में रजत, श्रवण ने 400 मीटर बाधा व 200 मीटर दौड़ में कांस्य, गायड़सिंह ने भी इसी स्पर्धा में कांस्य पदक जीत कर जोधपुर का नाम रोशन किया था। पिछले साल ही 17 से 21 नवंबर तक आंध्रप्रदेश के हैदराबाद में जूनियर नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी धर्मेंद्रसिंह भाटी, विक्रमसिंह, सोहननाथ और मुकेश कुमार ने राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया था। एथलेटिक्स महासंघ की ओर से इन खिलाड़ियों को अब तक टीए-डीए नहीं मिला।
No comments:
Post a Comment