जोधपुर. सूर्यनगरी में पांच-छह दिनों से बारिश की आस लगाए बैठे शहरवासियों को बुधवार बूंदाबांदी से ही संतोष करना पड़ा। बूंदाबांदी के बाद बढ़ी उमस ने शहरवासियों को पसीने से तर कर दिया।
मारवाड़ में बादलों ने बारिश के लिए लोगों को तरसा दिया है। सुबह से ही सूर्य और बादलों का आंख-मिचौनी का खेल चल रहा था। दोपहर बाद इंडस्ट्रीज एरिया, बासनी, शास्त्रीनगर जलजोग और सरदारपुरा क्षेत्र में हुई बूंदाबांदी से एक बार तो लोगों के चेहरे खिल गए, मगर बारिश बंद होते ही लोगों को काफी निराशा हुई। बूंदाबांदी के बाद उमस ने गर्मी को और बढ़ा दिया है।
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Thursday, July 15, 2010
सरपंचों ने किया कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन
जोधपुर। नरेगा के टेंडर्स में जानबूझ कर देरी करने के विरोध में जोधपुर जिले के सरपंचों ने बुधवार को कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन किया। टेंडर में देरी, सरपंचों के अधिकार खत्म करने और छह माह में एक भी पक्का काम नहीं होने से खफा जिले के सभी पंच-सरपंच दो दिन से जिला परिषद के प्रशिक्षण कार्यक्रम का बहिष्कार कर रहे हैं। साथ ही पंचायत समितियों पर धरना भी दे रहे हैं। बुधवार को कई सरपंचों ने कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन कलेक्टर को सौंपा और सात दिन में सरपंचों की मांगे नहीं मानने पर कलेक्टर कार्यालय के बाहर धरना देने की चेतावनी दी।
दो साल में आया पांच सौ यूनिट संक्रमित खून
जोधपुर. थैलीसीमिया पीड़ितों के एचआईवी और एचसीवी जैसे खतरनाक रोगों की चपेट में आने की प्रमुख वजह संक्रमित खून का चढ़ना है। ब्लड बैंकों में गाहे-ब-गाहे संक्रमित खून आता है। वर्तमान पद्धति में इसकी पुख्ता जांच व्यवस्था नहीं है।
एलिजा टेस्ट से केवल उसी रक्त में संक्रमण की पुष्टि हो सकती है, जिसमें एचआईवी, एचसीवी और एचबीवी जैसी बीमारियों के विषाणु परिपक्व होते हैं। तीन से चार सप्ताह से कम समय के ताजा संक्रमण की जांच एलिजा में संभव नहीं है। उम्मेद अस्पताल के ब्लड बैंक में वर्ष 2008 और 09 में विभिन्न माध्यमों से आए 19 हजार से अधिक यूनिट खून में से साढ़े पांच सौ से अधिक यूनिट खून जांच में संक्रमित निकला।
यह आंकड़ा जनवरी में पहली बार थैलीसीमिया पीड़ितों के एचआईवी और एचसीवी से पीड़ित होने के खुलासे के बाद ब्लड बैंक प्रबंधन की ओर से राज्य स्तर पर गठित जांच समिति को उपलब्ध करवाया गया था। खास बात तो यह है कि जब उम्मेद अस्पताल में इतना संक्रमित रक्त आ रहा है तो दूसरे ब्लड बैंकों के क्या हाल होंगे?
एलिजा टेस्ट से केवल उसी रक्त में संक्रमण की पुष्टि हो सकती है, जिसमें एचआईवी, एचसीवी और एचबीवी जैसी बीमारियों के विषाणु परिपक्व होते हैं। तीन से चार सप्ताह से कम समय के ताजा संक्रमण की जांच एलिजा में संभव नहीं है। उम्मेद अस्पताल के ब्लड बैंक में वर्ष 2008 और 09 में विभिन्न माध्यमों से आए 19 हजार से अधिक यूनिट खून में से साढ़े पांच सौ से अधिक यूनिट खून जांच में संक्रमित निकला।
यह आंकड़ा जनवरी में पहली बार थैलीसीमिया पीड़ितों के एचआईवी और एचसीवी से पीड़ित होने के खुलासे के बाद ब्लड बैंक प्रबंधन की ओर से राज्य स्तर पर गठित जांच समिति को उपलब्ध करवाया गया था। खास बात तो यह है कि जब उम्मेद अस्पताल में इतना संक्रमित रक्त आ रहा है तो दूसरे ब्लड बैंकों के क्या हाल होंगे?
दरें बढ़ा दीं पर सुविधाएं नहीं
जोधपुर. शहर में जेडीए ने योजना व गैर योजना क्षेत्रों में आबंटित किए जाने वाले भूखंडों के दाम बढ़ा दिए हैं। दूसरी ओर पिछले पांच सालों में जमीनों की डीएलसी दरें भी 10 गुना तक बढ़ गईं हैं, लेकिन कई इलाकों में जमीन के लाखों रुपए चुकाने के बावजूद मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल रही हैं।
कई कॉलोनियां बसे तो बरसों बीत गए, लेकिन वहां न तो पानी की लाइन बिछी और न ही सड़कें बनीं। दरअसल अन्य शहरों की तुलना में जोधपुर में पानी की भरपूर उपलब्धता के कारण पिछले पांच-सात सालों में शहर बीस किलोमीटर के दायरे में फैल गया। इसके साथ ही एम्स, आईआईटी और इंटरनेशनल एयरपोर्ट जैसे प्रोजेक्ट आने के कारण जमीनों में निवेश भी बढ़ा। इस वजह से कीमतों में उछाल आया। इसका फायदा उठाकर जिला प्रशासन ने भी डीएलसी दरें दस गुना तक बढ़ा दी। इससे सरकार को तो करोड़ों रुपए की आय हो रही है, ज्यादातर कॉलोनियों में मूलभूत सुविधाओं का विस्तार नहीं हुआ।
पाल-पाली रोड
पानी की भरपूर उपलब्धता के कारण बाहरी कॉलोनाइजर्स भी जोधपुर की ओर आकर्षित हुए हैं। पाली रोड व पाल रोड पर नई टाउनशिप व कॉलोनियां बस गईं। पांच सालों में स्थिति यह हो गई कि दस गुना दरों पर भी इन क्षेत्रों में जमीन नहीं मिल रही है। सरकार को रजिस्ट्रियों के माध्यम से करोड़ों रुपए का राजस्व मिल रहा है, मगर शहर के बाहर बसी कई कॉलोनियों में पानी की लाइनें नहीं पहुंची।
एम्स क्षेत्र
काजरी परिसर में एम्स की स्थापना की चर्चाओं के दौरान ही इस क्षेत्र की जमीनों के भाव बढ़ गए थे। एम्स का काम शुरू होने के बाद तो यहां के भाव आसमान पर पहुंच गए। पाली व पाल रोड के बीच स्थित इस एरिया की डीएलसी दरें भी सैकड़ों से हजारों पर पहुंच गई। नहर के पास बासनी औद्योगिक क्षेत्र में आलीशान कॉलोनियां बन गईं, मगर इन कॉलोनियों में सीवरेज तथा संपर्क सड़कें नहीं है।
आईआईटी एरिया
पाली रोड व पाल रोड पर कई कॉलोनियां बनने के कारण जमीनों की कीमतें बढ़ी, तो नागौर रोड के भाव आईआईटी व एअरपोर्ट प्रोजेक्ट ने बढ़ा दिए। इस रोड पर हालात ये हैं कि पीने का पानी भी टैंकरों से मंगवाना पड़ता है। मंडोर रेलवे स्टेशन के आगे तो पानी की लाइन तक नहीं है। इसी तरह जयपुर रोड पर डांगियावास तक निजी इंस्टीट्यूट व कॉलोनियां विकसित हो गई, लेकिन पीने का पानी भी नहीं पंहुचा पाया है।
कई कॉलोनियां बसे तो बरसों बीत गए, लेकिन वहां न तो पानी की लाइन बिछी और न ही सड़कें बनीं। दरअसल अन्य शहरों की तुलना में जोधपुर में पानी की भरपूर उपलब्धता के कारण पिछले पांच-सात सालों में शहर बीस किलोमीटर के दायरे में फैल गया। इसके साथ ही एम्स, आईआईटी और इंटरनेशनल एयरपोर्ट जैसे प्रोजेक्ट आने के कारण जमीनों में निवेश भी बढ़ा। इस वजह से कीमतों में उछाल आया। इसका फायदा उठाकर जिला प्रशासन ने भी डीएलसी दरें दस गुना तक बढ़ा दी। इससे सरकार को तो करोड़ों रुपए की आय हो रही है, ज्यादातर कॉलोनियों में मूलभूत सुविधाओं का विस्तार नहीं हुआ।
पाल-पाली रोड
पानी की भरपूर उपलब्धता के कारण बाहरी कॉलोनाइजर्स भी जोधपुर की ओर आकर्षित हुए हैं। पाली रोड व पाल रोड पर नई टाउनशिप व कॉलोनियां बस गईं। पांच सालों में स्थिति यह हो गई कि दस गुना दरों पर भी इन क्षेत्रों में जमीन नहीं मिल रही है। सरकार को रजिस्ट्रियों के माध्यम से करोड़ों रुपए का राजस्व मिल रहा है, मगर शहर के बाहर बसी कई कॉलोनियों में पानी की लाइनें नहीं पहुंची।
एम्स क्षेत्र
काजरी परिसर में एम्स की स्थापना की चर्चाओं के दौरान ही इस क्षेत्र की जमीनों के भाव बढ़ गए थे। एम्स का काम शुरू होने के बाद तो यहां के भाव आसमान पर पहुंच गए। पाली व पाल रोड के बीच स्थित इस एरिया की डीएलसी दरें भी सैकड़ों से हजारों पर पहुंच गई। नहर के पास बासनी औद्योगिक क्षेत्र में आलीशान कॉलोनियां बन गईं, मगर इन कॉलोनियों में सीवरेज तथा संपर्क सड़कें नहीं है।
आईआईटी एरिया
पाली रोड व पाल रोड पर कई कॉलोनियां बनने के कारण जमीनों की कीमतें बढ़ी, तो नागौर रोड के भाव आईआईटी व एअरपोर्ट प्रोजेक्ट ने बढ़ा दिए। इस रोड पर हालात ये हैं कि पीने का पानी भी टैंकरों से मंगवाना पड़ता है। मंडोर रेलवे स्टेशन के आगे तो पानी की लाइन तक नहीं है। इसी तरह जयपुर रोड पर डांगियावास तक निजी इंस्टीट्यूट व कॉलोनियां विकसित हो गई, लेकिन पीने का पानी भी नहीं पंहुचा पाया है।
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