जोधपुर. एक हिरण रै वास्ते म्हां लोग खुद रौ सिर कटवा दैवां..पर अठे तो इतरा कात्त हिरण तड़प-तड़प नै मर गिया, थाण की फिकर कोनी..म्हैं लोग चारौ-पाणी कठै सूं लावां! साहब इत्ता हिरण मर गिया..थै अबै आया हो, थाणों विभाग की काम रो कौनी.. हाथ जोड़ां, अबै बचियौड़ा हिरणां नै तो बचा लो।
उदास मन से ग्रामीणों ने कुछ ऐसी ही बातें शनिवार को भाचरना गांव में ढेढ़ी नाडी पर पहुंचे वन विभाग के अधिकारियों को कही। जिन हिरणों को बच्चों की तरह पाल-पोस कर बड़ा किया, उनकी अकाल मौत से ग्रामीण इतने व्यथित नजर आए कि खुद भी खाना-पीना भूल गए।
धुंधाड़ा कस्बे से आठ किलोमीटर दूर भाचरना गांव की ढेढ़ी नाडी और आसपास के खेतों में भूख-प्यास से दम तोड़ने वाले सौ से अधिक काले हिरणों के शवों को वन विभाग की टीम ने शनिवार को ग्रामीणों के रोष के बीच इकट्ठा किया। गांव के बुजुर्ग हजारीराम विश्नोई का कहना है कि आसपास के खेतों में अभी भी दर्जनों मृत हिरण पड़े हैं।
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